
टूटा टूटा सा वो सूरज
अपनी सुनहरी चादर समेटता,
रंग बदलती सुनहरी चादर,
लाल, संतरी, स्लेटी गुलाबी
लहराती चादर को
हौले हौले खींचता, समेटता बढ़ चला।
सिमटते से बादलों के पीछे
टटा टूटा सा वो सूरज,
झुके झुके से आसमां को लांघता,
तहरों की आगोश में समाने,
उनकी अथाह गहराई को पाटकर
फिर उस पार की दुनिया को जगाने
हौले हौले चल पड़ा।
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