
मम्मी की डांट,
तो पापा का प्यार,
अधूरी कॉपियों के फटे पन्ने
स्कूल की शर्ट पर
स्याही की बौछार।
गर्मियों की छुट्टियों में
स्पाइडरमौन से प्यार
ढेर सारा होमवर्क और
कच्चे आम का स्वाद,
कभी नई ड्रेस तो
कभी छड़ी की मार।
दोस्तों से झगड़े,
फिर मान मनोहार,
इंग्लिश में फर्स्ट
पर मैथ्स में हार।
हां, सब पीछे छूट गया,
प्यार भरी पर्चियां
और आई लव यू कार्ड।
खट्टी मीठी गोलियां, इमली, आचार
मिलजुल कर पिकनिक पर जाना,
साथ दीवाली, दशहरा मनाना,
होली पर जमकर हुड़दंग मचाना,
सच...जाना पहचाना तो अब
सब पीछे छूट गया।
3 comments:
बचपन की यादों को अच्छा शब्द चित्र दिया है। बचपन याद आ गई।
रागिनी, तुम्हारी कविता पढ़कर बचपन की यादें ताज़ा हो गई। कभी-कभी लगता है कि क्यों कोई भी पल गुजर जाने के बाद याद आता है...और समझ में आती है उस पल की अहमियत।
अरे नहीं सब पीछे नहीं छूटा। पीछे जो, छोड़ा आगे अलग तरीके से मिला। खैर, आपने अच्छा लिखा है।
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